Implied Volatility (IV): ऑप्शन ट्रेडिंग में इम्प्लाइड वोलैटिलिटी (IV) क्या है?

IMPLIED VOLATILITY
IMPLIED VOLATILITY (IV)

What is implied volatility in options (IV): ऑप्शन ट्रेडिंग में इम्प्लाइड वोलैटिलिटी (IV) क्या है? – इम्प्लाइड वोलैटिलिटी (IV) ऑप्शन ट्रेडिंग में एक महत्वपूर्ण मेट्रिक है जो शेयर बाजार में किसी शेयर के भविष्य की कीमत में होने वाले संभावित परिवर्तन को मापने में मदद करता है। ट्रेडर और इन्वेस्टर्स अक्सर इस IV का उपयोग किसी भी शेयर या ऑप्शन कॉन्ट्रैक्ट (Option Contract) की कीमतों की मांग और पूर्ति का पूर्वानुमान लगाने के लिए करते हैं।

इम्प्लाइड वोलैटिलिटी (IV) को ऐतिहासिक वोलैटिलिटी जिसे रियलाइज्ड वोलैटिलिटी या सांख्यिकीय वोलैटिलिटी (Realized Volatility or Statistical Volatility)भी कहते हैं उससे तुलना करके इसे एक समान समझने की भूल नहीं करनी चाहिए। ऐतिहासिक वोलैटिलिटी (Historical Volatility) बाजार में अतीत में हुए बाजार के बदलाओं और उनके रियल परिणामों को मापता है, जबकि इम्प्लाइड वोलैटिलिटी बाजार में किसी शेयर या ऑप्शन कॉन्ट्रैक्ट के भविष्य की कीमत के अनिश्चितताओं का अनुमान लगाने में सहायक होता है।

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Implied Volatility (IV): इम्प्लाइड वोलैटिलिटी (IV) का महत्व

जैसा की हमने ऊपर बताया है की इम्प्लाइड वोलैटिलिटी का इस्तेमाल अक्सर ऑप्शंस कॉन्ट्रैक्ट या शेयर की कीमतों में भविष्य में होने वाले संभावित परिवर्तन को मापने के लिए किया जाता है। अगर किसी ऑप्शन कॉन्ट्रैक्ट या शेयर का इम्प्लाइड वोलैटिलिटी ज्यादा है, तो उस ऑप्शन का प्रीमियम भी ज्यादा होगा। दूसरी ओर, अगर इम्प्लाइड वोलैटिलिटी कम है, तो ऑप्शन का कीमत भी काम होगा।

आपूर्ति और मांग के साथ समय का मूल्य भी इम्प्लाइड वोलैटिलिटी की गणना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। जब बाजार में मंदी होती है, तो इम्प्लाइड वोलैटिलिटी बढ़ता है, और जब बाजार में तेजी होती है तो इम्प्लॉइड वोलैटिलिटी घट जाता है। क्योंकि बाजार में मंदी की स्थिति में कीमतों में अस्थिरता बानी रहती है और तेज़ी की स्थिति में बाजार को स्टेबल माना जाता है।

इम्प्लाइड वोलैटिलिटी (IV) कैसे काम करता है?

इम्प्लाइड वोलैटिलिटी (IV) इस बात का पैमाना होता है कि बाजार में ट्रेडर और इन्वेस्टर्स को कितना विश्वास है कि किसी स्टॉक, ऑप्शन कॉन्ट्रैक्ट, या अन्य एसेट्स की कीमतों में भविष्य में कितनी बदलाव हो सकता है। जब ट्रेडर ऑप्शंस खरीदते या बेचते हैं, तो वे केवल स्टॉक और बाजार की दिशा के बारे में नहीं सोच रहे होते, बल्कि इस बात पर भी ध्यान दे रहे होते हैं कि ऑप्शन की समाप्ति अर्थात ऑप्शन एक्सपायरी से पहले कीमतों में कितना बदलाव हो सकता है।

इम्प्लाइड वोलैटिलिटी को सीधे बाजार में नहीं देखा जा सकता। इसे किसी ऑप्शन प्राइसिंग मॉडल, जैसे कि ब्लैक-शोल्स मॉडल, का उपयोग करके गणना की जाती है। इस मॉडल में वर्तमान ऑप्शन की कीमत से शुरू करके उस वोलैटिलिटी के स्तर का अनुमान लगाया जाता है, जो उस कीमत को सही ठहराने के लिए आवश्यक है।

इम्प्लाइड वोलैटिलिटी (IV) का उपयोग

इम्प्लाइड वोलैटिलिटी का उपयोग कई तरीकों से किया जाता है। सबसे पहले, यह ट्रेडर्स को यह आकलन करने में मदद करता है की ऑप्शंस की कीमतें सस्ती हैं या महंगी। हाई इम्प्लाइड वोलैटिलिटी वाला ऑप्शन सस्ता ऑप्शन के मुकाबले महंगा होगा। दूसरा, कुछ ट्रेडर्स इम्प्लाइड वोलैटिलिटी में बदलाव को मुनाफा कमाने के लिए उपयोग करते हैं। जैसे कि वे कम इम्प्लाइड वोलैटिलिटी के समय ऑप्शन को इस उम्मीद में खरीद लेते हैं की भविष्य में ऑप्शन का कीमत बढ़ेगा, और हाई इम्प्लाइड वोलैटिलिटी के समय ऑप्शन को इस उम्मीद में बेच देते हैं की भविष्य में ऑप्शन का कीमत घटेगा।

इम्प्लाइड वोलैटिलिटी (IV) को शेयर बाजार में कैसे देखा जाता है?

इम्प्लाइड वोलैटिलिटी को अक्सर बाजार में डर और अनिश्चितता के संकेतक के रूप में देखा जाता है। जब बाजार शांत होता है और ट्रेडर्स को कोई बड़ी चिंता नहीं होती, तो इम्प्लाइड वोलैटिलिटी कम होता है। लेकिन जब बाजार में अनिश्चितता या जोखिम का स्तर बढ़ता है, तो इम्प्लाइड वोलैटिलिटी बढ़ जाता है। उदाहरण के लिए, “VIX” या CBOE वोलैटिलिटी इंडेक्स एसएंडपी 500 इंडेक्स ऑप्शंस की इम्प्लाइड वोलैटिलिटी का एक माप है, जिसे अक्सर बाजार के “डर के माप” के रूप में जाना जाता है। जब बाजार में तनाव या अनिश्चितता होती है, तो VIX में तेजी देखी जाती है।

इम्प्लाइड वोलैटिलिटी (IV) और ऑप्शंस प्राइसिंग

इम्प्लाइड वोलैटिलिटी ऑप्शंस की कीमत तय करने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। ऑप्शंस कॉन्ट्रैक्ट्स खरीदने का मतलब होता है कि ट्रेडर या इन्वेस्टर किसी वित्तीय एसेट्स को एक निश्चित कीमत पर खरीदने या बेचने का अधिकार खरीदते हैं। इम्प्लाइड वोलैटिलिटी उस ऑप्शन के भविष्य के कीमत का अनुमान लगता है, और ऑप्शन के वर्तमान कीमत को भी ध्यान में रखता है। हाई इम्प्लाइड वोलैटिलिटी वाले ऑप्शंस का प्रीमियम अधिक होता है और कम वोलैटिलिटी वाले ऑप्शन का प्रीमियम कम होता है।

इम्प्लाइड वोलैटिलिटी (IV) की आइये एक उदाहरण से समझें

मान लीजिए कि एक स्टॉक ₹1,000 प्रति शेयर पर ट्रेड कर रहा है और शेयर बाजार को उम्मीद है कि कंपनी अगले महीने एक महत्वपूर्ण घोषणा करेगी, जो स्टॉक की कीमत पर बड़ा प्रभाव डाल सकती है। इस कारण से, स्टॉक के ऑप्शंस की इम्प्लाइड वोलैटिलिटी 40% तक बढ़ गई है। यदि इस स्टॉक के लिए ₹1,050 की स्ट्राइक प्राइस वाला एक कॉल ऑप्शन, जिसकी एक्सपायरी में एक महीना बाकी है, ₹25 की कीमत पर बिक रहा है, तो इम्प्लाइड वोलैटिलिटी का उपयोग करते हुए हम ऑप्शन की कीमत का विश्लेषण कर सकते हैं। अगर वास्तविक वोलैटिलिटी 40% से ज्यादा होता है, तो ऑप्शन की कीमत बढ़ सकती है, और यदि कम होता है, तो कीमत घट सकती है।

ओपिनियन

इम्प्लाइड वोलैटिलिटी (IV) किसी शेयर या ऑप्शन कॉन्ट्रैक्ट के भविष्य के संभावित मूल्य में उतार-चढ़ाव को मापता है और बाजार की अनिश्चितता या जोखिम के बारे में निवेशकों की धारणाओं को दर्शाता है। यह न केवल ऑप्शंस के कीमत को प्रभावित करता है, बल्कि बाजार के भावना को भी दर्शाता है। किसी भी ऑप्शन कॉन्ट्रैक्ट में हाई इम्प्लाइड वोलैटिलिटी के साथ, कीमतों में बड़े उतार-चढ़ाव की उम्मीद होती है, जबकि कम इम्प्लाइड वोलैटिलिटी स्थिर कीमतों का संकेत देता है। ट्रेडर और निवेशक इम्प्लाइड वोलैटिलिटी का उपयोग बाजार की भावनाओं का आकलन करने, ट्रेडिंग रणनीतियों का निर्धारण करने और बेहतर निवेश निर्णय लेने के लिए करते हैं।

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