
सिक्योरिटीज एंड एक्सचेंज बोर्ड ऑफ़ इंडिया (SEBI) के वर्किंग कमिटी नई फ्यूचर एंड ऑप्शंस ट्रेंडिंग (F&O) में पिछले कुछ सालों में हो रहे अप्रत्याशित वृद्धि और वोलैटिलिटी को कण्ट्रोल करने के लिए 7 सुझाव दिए हैं।सेबी कमेटी का मानना है की इससे रिटेल ट्रेडर्स के पैसों को सुरक्षा प्रदान करने और ट्रेडिंग को ट्रांसपेरेंट और भविष्य में होने वाले किसी अप्रिय घटना चक्र को कण्ट्रोल करने में मदद मिलेगी।
सेबी के 7 नए रेकमेंडेशन्स या रूल्स ये हैं।
1. वीकली ऑप्शन को घटा कर कम करना
सेबी के रिकमेन्डेशन के अनुसार अभी होने वाले वीकली ऑप्शन जो की हर आठवें दिन फ्राइडे को Expire होता है उसे घटा के कम करना। वीकली ऑप्शन जबसे इंट्रोड्यूस हुआ है फ्यूचर एंड ऑप्शन डेरिवेटिव ट्रेडिंग में काफी पॉपुलर हुआ है। सभी दिन जो वीकली एक्सपायरी ऑप्शन होते हैं क्या इनको घटा कर एक या दो दिन किया जाए।
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2. स्ट्राइक प्राइस को कम करना
किसी भी स्टॉक इंडेक्स में ट्रेडिंग का स्ट्राइक प्राइस इंडेक्स के वॉल्यूम और लिक्विडिटी के ऊपर आधारित होता है। और ये प्राइस डायनामिक तौर पर डीसाईड किया जाता है। लेकिन सेबी के रेकमेंडेशन्स के अनुसार स्ट्राइक प्राइस की कीमतों को एक निश्चित तरीके से कम किया जा सकता है। उदहारण के लिए कभी कभी हम देखते है की बैंक निफ़्टी निफ़्टी या किसी और इंडेक्स में स्ट्राइक प्राइस अच्चानक से बहुत ज्यादा हो जाता है या कभी कभी बिलकुल कम हो जाता है।
3. एक्सपायरी के दिन ऑप्शन स्प्रेड को घटाना
आम तौर पर कैलेंडर स्प्रेड किसी ऑप्शन को कॉल या पुट के द्वारा उसके नजदीक शॉर्ट या लॉन्ग एक्सपायरी टर्म के हिसाब से ट्रेड किया जाता है। इस कैलेंडर स्प्रेड को कम किया जा सकता है।
4. ऑप्शन खरीदारों से अपफ्रंट प्रीमियम कीमत लेना
जितने भी ऑप्शन बायर हैं उनसे कुछ अपफ्रंट कीमत वसूलना ताकि जो लोग अपफ्रंट कीमत चुकाने में सक्षम हैं सिर्फ वो ही लोग ऑप्शन ट्रेडिंग कर सकें। और जो बहुत ही छोटे ऑप्शन बायर हैं उनमे से अधिकांश को ऑप्शन ट्रेडिंग का नॉलेज भी नहीं होता वो छोटी रकम ले कर स्टॉक मार्केट में अपना किस्मत आजमाने आते हैं और पैसा लॉस करते हैं वो लोग ऑप्शन ट्रेडिंग ना कर सकें।
5. पोजीशन लिमिट की इंट्रा डे मॉनिटरिंग
ये पोजीशन लिमिट उन ट्रेडर्स के लिए है जो ऑप्शन सेल करते हैं। उनके पोजीशन की लिमिटेशन को कण्ट्रोल करने के लिए कुछ तकनीकी सुधार किये जाये तथा उनकी मॉनिटरी लगभग रियल टाइम में की जाए ताकि अगर किसी ट्रेडर के द्वारा ये ब्रीच किया जाता है तो तुरंत उसका पता लग सके। अब तक ऐसा कुछ होने पर ट्रेडिंग डे ख़त्म होने तक शाम को ही पता चलता है।
6. कॉन्ट्रैक्ट के लॉट साइज को बढ़ाना
अभी हाल ही में कुछ एक्सचैंजेस ने कुछ ऑप्शन इंडेक्स के लॉट साइज को घटा दिया था। उदहारण के लिए NSE निफ़्टी 50 में पहले लॉट साइज 50 का होता था लेकिन पिछले कुछ महीने से NSE ने इसे घटा कर 25 कर दिया था। तो अगर सेबी के रेकमेंडेशन्स को अमल में लाया जाता है तो निफ़्टी 50 सांथ और भी कुछ इंडेक्स के ट्रेडिंग लॉट साइज बढ़ सकते हैं। जिससे बहुत सारे छोटे रिटेलर ऑप्शन ट्रेडिंग में प्रवेश ना कर सकें।
7. कॉन्ट्रैक्ट एक्सपायरी के करीब तथा एक्सपायरी के दिन मार्जिन को को बढ़ाना
सेबी के नए रेकमेंडेशन्स में ये भी सुझाव दिया गया है की ब्रोकर ट्रेडर्स से एक्सपायरी नजदीक होने पर मार्जिन ट्रेडिंग मार्जिन को बढ़ा दे ताकि अगर कोई ट्रेडर एक निश्चित सिमा के बाहर जा के लॉस करता है तो उस स्तिथि में ब्रोकर ट्रेड को काट सकता है जिससे की किसी भी ट्रेडर का अप्रत्याशी लॉस होने से बच जाए।
ओपिनियन
सेबी के ये जो 7 रेकमेंडेशन्स हैं अभी इस पर फाइनल फैसला आना बाकी है। लेकिन अगर ये सारे सुझाव अगर सेबी की अगली बैठक में मान लिए जाते हैं तो निश्चित तौर पर फ्यूचर एंड ऑप्शंस ट्रेडिंग के वॉल्यूम एंड लिक्विडिटी में तो कुछ हद तक नियंत्रण आएगा लेकिन छोटे और मझोलिय ट्रेडर्स जो की छोटी पूंजी से ट्रेडिंग करते हैं या ऑप्शन ट्रेडिंग सिखने के लिए ट्रेडिंग करते हैं उन सबकी रूचि ऑप्शन ट्रेडिंग में कम हो सकती है या बहुत सारे छोटे ऑप्शन ट्रेडर ट्रेडिंग छोड़ सकते हैं
क्यूंकि जो लोग छोटी रकम ले कर आते हैं वो लोग ऑप्शंस के लॉट साइज बढ़ने से बड़ी रकम नहीं लगा सकते इसलिए उनके लिए कोई और रास्ता नहीं बचेगा और वो लोग ऑप्शन ट्रेडिंग से मुँह मोड़ सकते हैं। जो भी हो देखते हैं इन नए रूल्स एंड रेकमेंडेशन्स के अमली जामा पहनाने के बाद उसके डेरिवेटिव ट्रेडिंग पर क्या असर पडता है। या बहुत से छोटे और मझौलिये ट्रेडर क्या क्रिप्टोकरेंसी ट्रेडिंग के तरफ रुख करते हैं?